Best Historical and Knowledgeable Content here... Know More.

  • +91 8005792734

    Contact Us

  • amita2903.aa@gmail.com

    Support Email

  • Jhunjhunu, Rajasthan

    Address

*श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण*

 

*बालकाण्ड* 

 

*सैंतीसवाँ सर्ग*

 

*गंगासे कार्तिकेयकी उत्पत्तिका प्रसंग*

 

जब महादेवजी तपस्या कर रहे थे, उस समय इन्द्र और अग्नि आदि सम्पूर्ण देवता अपने लिये सेनापतिकी इच्छा लेकर ब्रह्माजीके पास आये॥१॥

देवताओंको आराम देनेवाले श्रीराम! इन्द्र और अग्निसहित समस्त देवताओंने भगवान् ब्रह्माको प्रणाम करके इस प्रकार कहा—॥२॥

'प्रभो! पूर्वकालमें जिन भगवान् महेश्वरने हमें (बीजरूपसे) सेनापति प्रदान किया था, वे उमादेवीके साथ उत्तम तपका आश्रय लेकर तपस्या करते हैं॥३॥

'विधि-विधानके ज्ञाता पितामह! अब लोकहितके लिये जो कर्तव्य प्राप्त हो, उसको पूर्ण कीजिये; क्योंकि आप ही हमारे परम आश्रय हैं'॥४॥

देवताओंकी यह बात सुनकर सम्पूर्ण लोकोंके पितामह ब्रह्माजीने मधुर वचनोंद्वारा उन्हें सान्त्वना देते हुए कहा—॥५॥

'देवताओ! गिरिराजकुमारी पार्वतीने जो शाप दिया है, उसके अनुसार तुम्हें अपनी पत्नियोंके गर्भसे अब कोई संतान नहीं होगी। उमादेवीकी वाणी अमोघ है; अतः वह सत्य होकर ही रहेगी; इसमें संशय नहीं है॥६॥ 

'ये हैं उमाकी बड़ी बहिन आकाशगंगा, जिनके गर्भमें शङ्करजीके उस तेजको स्थापित करके अग्निदेव एक ऐसे पुत्रको जन्म देंगे, जो देवताओंके शत्रुओंका दमन करनेमें समर्थ सेनापति होगा॥७॥

'ये गंगा गिरिराजकी ज्येष्ठ पुत्री हैं, अतः अपनी छोटी बहिनके उस पुत्रको अपने ही पुत्रके समान मानेंगी। उमाको भी यह बहुत प्रिय लगेगा। इसमें संशय नहीं है'॥८॥

रघुनन्दन! ब्रह्माजीका यह वचन सुनकर सब देवता कृतकृत्य हो गये। उन्होंने ब्रह्माजीको प्रणाम करके उनका पूजन किया॥९॥

श्रीराम! विविध धातुओंसे अलंकृत उत्तम कैलास पर्वतपर जाकर उन सम्पूर्ण देवताओंने अग्निदेवको पुत्र उत्पन्न करनेके कार्यमें नियुक्त किया॥१०॥

वे बोले—'देव! हुताशन! यह देवताओंका कार्य है, इसे सिद्ध कीजिये। भगवान् रुद्रके उस महान् तेजको अब आप गंगाजीमें स्थापित कर दीजिये'॥११॥

तब देवताओंसे 'बहुत अच्छा' कहकर अग्निदेव गंगाजीके निकट आये और बोले—'देवि! आप इस गर्भको धारण करें। यह देवताओंका प्रिय कार्य है'॥१२॥

अग्निदेवकी यह बात सुनकर गंगादेवीने दिव्यरूप धारण कर लिया। उनकी यह महिमा—यह रूप-वैभव देखकर अग्निदेवने उस रुद्र-तेजको उनके सब ओर बिखेर दिया॥१३॥

रघुनन्दन! अग्निदेवने जब गंगादेवीको सब ओरसे उस रुद्र-तेजद्वारा अभिषिक्त कर दिया, तब गंगाजीके सारे स्त्रोत उससे परिपूर्ण हो गये॥१४॥

तब गंगाने समस्त देवताओंके अग्रगामी अग्निदेवसे इस प्रकार कहा—'देव! आपके द्वारा स्थापित किये गये इस बढ़े हुए तेजको धारण करनेमें मैं असमर्थ हूँ। इसकी आँचसे जल रही हूँ और मेरी चेतना व्यथित हो गयी है'॥१५½॥

तब सम्पूर्ण देवताओंके हविष्यको भोग लगानेवाले अग्निदेवने गंगादेवीसे कहा—'देवि! हिमालय पर्वतके पार्श्वभागमें इस गर्भको स्थापित कर दीजिये॥१६½॥

निष्पाप रघुनन्दन! अग्निकी यह बात सुनकर महातेजस्विनी गंगाने उस अत्यन्त प्रकाशमान गर्भको अपने स्रोतोंसे निकालकर यथोचित स्थानमें रख दिया॥१७½॥ 

गंगाके गर्भसे जो तेज निकला, वह तपाये हुए जाम्बूनद नामक सुवर्णके समान कान्तिमान् दिखायी देने लगा (गंगा सुवर्णमय मेरुगिरिसे प्रकट हुई हैं; अतः उनका बालक भी वैसे ही रूप-रंगका हुआ)। पृथ्वीपर जहाँ वह तेजस्वी गर्भ स्थापित हुआ, वहाँकी भूमि तथा प्रत्येक वस्तु सुवर्णमयी हो गयी। उसके आस-पासका स्थान अनुपम प्रभासे प्रकाशित होनेवाला रजत हो गया। उस तेजकी तीक्ष्णतासे ही दूरवर्ती भूभागकी वस्तुएँ ताँबे और लोहेके रूपमें परिणत हो गयीं॥१८-१९॥

उस तेजस्वी गर्भका जो मल था, वही वहाँ राँगा और सीसा हुआ। इस प्रकार पृथ्वीपर पड़कर वह तेज नाना प्रकारके धातुओंके रूपमें वृद्धिको प्राप्त हुआ॥२०॥ 

पृथ्वीपर उस गर्भके रखे जाते ही उसके तेजसे व्याप्त होकर पूर्वोक्त श्वेतपर्वत और उससे सम्बन्ध रखनेवाला सारा वन सुवर्णमय होकर जगमगाने लगा॥२१॥

पुरुषसिंह रघुनन्दन! तभीसे अग्निके समान प्रकाशित होनेवाले सुवर्णका नाम जातरूप हो गया; क्योंकि उसी समय सुवर्णका तेजस्वी रूप प्रकट हुआ था। उस गर्भके सम्पर्कसे वहाँका तृण, वृक्ष, लता और गुल्म—सब कुछ सोने का हो गया॥२२॥

तदनन्तर इन्द्र और मरुद्गणोंसहित सम्पूर्ण देवताओंने वहाँ उत्पन्न हुए कुमारको दूध पिलानेके लिये छहों कृत्तिकाओंको नियुक्त किया॥२३॥

तब उन कृत्तिकाओंने 'यह हम सबका पुत्र हो' ऐसी उत्तम शर्त रखकर और इस बातका निश्चित विश्वास लेकर उस नवजात बालकको अपना दूध प्रदान किया॥२४॥

उस समय सब देवता बोले—'यह बालक कार्तिकेय कहलायेगा और तुमलोगोंका त्रिभुवनविख्यात पुत्र होगा—इसमें संशय नहीं है'॥२५॥

देवताओंका यह अनुकूल वचन सुनकर शिव और पार्वतीसे स्कन्दित (स्खलित) तथा गंगाद्वारा गर्भस्त्राव होनेपर प्रकट हुए अग्निके समान उत्तम प्रभासे प्रकाशित होनेवाले उस बालकको कृत्तिकाओंने नहलाया॥२६॥

ककुत्स्थकुलभूषण श्रीराम! अग्नितुल्य तेजस्वी महाबाहु कार्तिकेय गर्भस्रावकालमें स्कन्दित हुए थे; इसलिये देवताओंने उन्हें स्कन्द कहकर पुकारा॥२७॥

तदनन्तर कृत्तिकाओंके स्तनोंमें परम उत्तम दूध प्रकट हुआ। उस समय स्कन्दने अपने छः मुख प्रकट करके उन छहोंका एक साथ ही स्तनपान किया॥२८॥ 

एक ही दिन दूध पीकर उस सुकुमार शरीरवाले शक्तिशाली कुमारने अपने पराक्रमसे दैत्योंकी सारी सेनाओंपर विजय प्राप्त की॥२९॥

तत्पश्चात् अग्नि आदि सब देवताओंने मिलकर उन महातेजस्वी स्कन्दका देवसेनापतिके पदपर अभिषेक किया॥३०॥

श्रीराम! यह मैंने तुम्हें गंगाजीके चरित्रको विस्तारपूर्वक बताया है; साथ ही कुमार कार्तिकेयके जन्मका भी प्रसंग सुनाया है, जो श्रोताको धन्य एवं पुण्यात्मा बनानेवाला है॥३१॥

काकुत्स्थ! इस पृथ्वीपर जो मनुष्य कार्तिकेयमें भक्तिभाव रखता है, वह इस लोकमें दीर्घायु तथा पुत्र-पौत्रोंसे सम्पन्न हो मृत्युके पश्चात् स्कन्दके लोकमें जाता है॥३२॥

 

*इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके बालकाण्डमें सैंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥३७॥*